NCERT Solutions for Class 11 Hindi Core – गद्य भाग – विदाई-संभाषण
लेखक परिचय
● जीवन परिचय-बालमुकुंद गुप्त का जन्म 1865 ई. में हरियाणा के रोहतक जिले के गुड़ियानी गाँव में हुआ। इनके पिता का नाम लाला पूरनमल था। इनकी आरंभिक शिक्षा गाँव में ही उर्दू भाषा में हुई। इन्होंने हिंदी बाद में सीखी। इन्होंने मिडिल कक्षा तक पढ़ाई की, परंतु स्वाध्याय से काफी ज्ञान अर्जित किया। ये खड़ी बोली और आधुनिक हिंदी साहित्य को स्थापित करने वाले लेखकों में से एक थे।
इन्होंने कई अखबारों का संपादन किया। इन्होंने उर्दू के दो पत्रों ‘अखबार-ए-चुनार’ तथा ‘कोहेनूर’ का संपादन किया। बाद में हिंदी के समाचार-पत्रों ‘हिंदुस्तान’, हिंदी बंगवासी’, ‘भारतमित्र’ आदि का संपादन किया। इनका देहावसान बहुत कम आयु में 1907 ई. में हुआ।
इन्होंने कई अखबारों का संपादन किया। इन्होंने उर्दू के दो पत्रों ‘अखबार-ए-चुनार’ तथा ‘कोहेनूर’ का संपादन किया। बाद में हिंदी के समाचार-पत्रों ‘हिंदुस्तान’, हिंदी बंगवासी’, ‘भारतमित्र’ आदि का संपादन किया। इनका देहावसान बहुत कम आयु में 1907 ई. में हुआ।
● रचनाएँ-इनकी रचनाएँ पाँच संग्रहों में प्रकाशित हुई हैं—
शिवशंभु के चिट्ठे, चिट्ठे और खत, खेल तमाशा, गुप्त निबंधावली, स्फुट कविताएँ।
शिवशंभु के चिट्ठे, चिट्ठे और खत, खेल तमाशा, गुप्त निबंधावली, स्फुट कविताएँ।
● साहित्यिक परिचय-गुप्त जी भारतेंदु युग और द्ववेदी युग के बीच की कड़ी के रूप में थे। ये राष्ट्रीय नवजागरण के सक्रिय पत्रकार थे। उस दौर के अन्य पत्रकारों की तरह वे साहित्य-सृजन में भी सक्रिय रहे। पत्रकारिता उनके लिए स्वाधीनता-संग्राम का हथियार थी। यही कारण है कि उनके लेखन में निभीकता पूरी तरह मौजूद है।
इनकी रचनाओं में व्यंग्य-विनोद का भी पुट दिखाई पड़ता है। इन्होंने बांग्ला और संस्कृत की कुछ रचनाओं के अनुवाद भी किए। वे शब्दों के अद्भुत पारखी थे। अनस्थिरता शब्द की शुद्धता को लेकर उन्होंने महावीर प्रसाद द्रविवेदी से लंबी बहस की।
इनकी रचनाओं में व्यंग्य-विनोद का भी पुट दिखाई पड़ता है। इन्होंने बांग्ला और संस्कृत की कुछ रचनाओं के अनुवाद भी किए। वे शब्दों के अद्भुत पारखी थे। अनस्थिरता शब्द की शुद्धता को लेकर उन्होंने महावीर प्रसाद द्रविवेदी से लंबी बहस की।
पाठ का साराश
विदाई-संभाषण पाठ वायसराय कर्जन जो 1899-1904 व 1904-1905 तक दो बार वायसराय रहे, के शासन में भारतीयों की स्थिति का खुलासा करता है। यह अध्याय शिवशंभु के चिट्ठे का अंश है। कर्जन के शासनकाल में विकास के बहुत कार्य हुए, नए-नए आयोग बनाए गए, किंतु उन सबका उद्देश्य शासन में गोरों का वर्चस्व स्थापित करना तथा इस देश के संसाधनों का अंग्रेजों के हित में सर्वोत्तम उपयोग करना था। कर्जन ने हर स्तर पर अंग्रेजों का वर्चस्व स्थापित करने की चेष्टा की। वे सरकारी निरंकुशता के पक्षधर थे। लिहाजा प्रेस की स्वतंत्रता पर उन्होंने प्रतिबंध लगा दिया। अंततः कौंसिल में मनपसंद अंग्रेज सदस्य नियुक्त करवाने के मुद्दे पर उन्हें देश-विदेश दोनों जगहों पर नीचा देखना पड़ा। क्षुब्ध होकर उन्होंने इस्तीफा दे दिया और वापस इंग्लैंड चले गए।
लेखक ने भारतीयों की बेबसी, दुख एवं लाचारी को व्यंग्यात्मक ढंग से लॉर्ड कर्जन की लाचारी से जोड़ने की कोशिश की है। साथ ही यह बताने की कोशिश की है कि शासन के आततायी रूप से हर किसी को कष्ट होता है चाहे वह सामान्य जनता हो या फिर लॉर्ड कर्जन जैसा वायसराय। यह निबंध उस समय लिखा गया है जब प्रेस पर पाबंदी का दौर चल रहा था। ऐसी स्थिति में विनोदप्रियता, चुलबुलापन, संजीदगी, नवीन भाषा-प्रयोग एवं रवानगी के साथ यह एक साहसिक गद्य का नमूना है।
लेखक कर्जन को संबोधित करते हुए कहता है कि आखिरकार आपके शासन का अंत हो ही गया, अन्यथा आप तो यहाँ के स्थाई वायसराय बनने की इच्छा रखते थे। इतनी जल्दी देश को छोड़ने की बात आपको व देशवासियों को पता नहीं थी। इससे ईश्वर-इच्छा का पता चलता है। आपके दूसरी बार आने पर भारतवासी प्रसन्न नहीं थे। वे आपके जाने की प्रतीक्षा करते थे, परंतु आपके जाने से लोग दु:खी हैं। बिछड़न का समय पवित्र, निर्मल व कोमल होता है। यह करुणा पैदा करने वाला होता है। भारत में तो पशु-पक्षी भी ऐसे समय उदास हो जाते हैं। शिवशंभु की दो गाएँ थीं। बलशाली गाय कमजोर को टक्कर मारती रहती थी। एक दिन बलशाली गाय को पुरोहित को दान दे दिया गया, परंतु उसके जाने के बाद कमजोर गाय प्रसन्न नहीं रही। उसने चारा भी नहीं खाया। यहाँ पशु ऐसे हैं तो मानव की दशा का अंदाजा लगाना मुश्किल होता है।
इस देश में पहले भी अनेक शासक आए और चले गए। यह परंपरा है, परंतु आपका शासनकाल दु:खों से भरा था। कर्जन ने सारा राजकाज सुखांत समझकर किया था, उसका अंत दु:ख में हुआ। वास्तव में लीलामय की लीला का किसी को पता नहीं चलता। दूसरी बार आने पर आपने ऐसे कार्य करने की सोची थी जिससे आगे के शासकों को परेशानी न हो, परंतु सब कुछ उलट गया। आप स्वयं बेचैन रहे और देश में अशांति फैला दी। आने वाले शासकों को परेशान रहना पड़ेगा। आपने स्वयं भी कष्ट सहे और जनता को भी कष्ट दिए।
लेखक कहता है कि आपका स्थान पहले बहुत ऊँचा था। आज आपकी दशा बहुत खराब है। दिल्ली दरबार में ईश्वर और एडवर्ड के बाद आपका सर्वोच्च स्थान था। आपकी कुर्सी सोने की थी। जुलूस में आपका हाथी सबसे आगे व ऊँचा था, परंतु जंगी लाट के मुकाबले में आपको नीचा देखना पड़ा। आप धीर व गंभीर थे, परंतु कौंसिल में गैरकानूनी कानून पास करके और कनवोकेशन में अनुचित भाषण देकर अपनी धीरता का दिवाला निकाल दिया। आपके इस्तीफे की धमकी को स्वीकार कर लिया गया। आपके इशारों पर राजा, महाराजा, अफसर नाचते थे, परंतु इस इशारे में देश की शिक्षा और स्वाधीनता समाप्त हो गई। आपने देश में बंगाल विभाजन किया, परंतु आप अपनी मजी से एक फौजी को इच्छित पद पर नहीं बैठा सके। अत: आपको इस्तीफा देना पड़ा।
लेखक कहता है कि आपका मनमाना शासन लोगों को याद रहेगा। आप ऊँचे चढ़कर गिरे हैं, परंतु गिरकर पड़े रहना अधिक दुखी करता है। ऐसे समय में व्यक्ति स्वयं से घृणा करने लगता है। आपने कभी प्रजा के हित की नहीं सोची। आपने आँख बंदकर हुक्म चलाए और किसी की नहीं सुनी। यह शासन का तरीका नहीं है। आपने हर काम अपनी जिद से पूरे किए। कैसर और जार भी घेरने-घोटने से प्रजा की बात सुनते थे। आपने कभी प्रजा को अपने समीप ही नहीं आने दिया। नादिरशाह ने भी आसिफजाह के तलवार गले में डालकर प्रार्थना करने पर कत्लेआम रोक दिया था, परंतु आपने आठ करोड़ जनता की प्रार्थना पर बंग-भंग रद्द करने का फैसला नहीं लिया। अब आपका जाना निश्चित है, परंतु आप बंग-भंग करके अपनी जिद पूरा करना चाहते हैं। ऐसे में प्रजा कहाँ जाकर अपना दु:ख जताए।
यहाँ की जनता ने आपकी जिद का फल देख लिया। जिद ने जनता को दु:खी किया, साथ ही आपको भी जिसके कारण आपको भी पद छोड़ना पड़ा। भारत की जनता दु:ख और कष्टों की अपेक्षा परिणाम का अधिक ध्यान रखती है। वह जानती है कि संसार में सब चीज़ों का अंत है। उन्हें भगवान पर विश्वास है। वे दु:ख सहकर भी पराधीनता का कष्ट झेल रहे हैं। आप ऐसी जनता की श्रद्धा-भक्ति नहीं जीत सके।
कर्जन अनपढ़ प्रजा का नाम एकाध बार लेते थे। यह जनता नर सुलतान नाम के राजकुमार के गीत गाती है। यह राजकुमार संकट में नरवरगढ़ नामक स्थान पर कई साल रहा। उसने चौकीदारी से लेकर ऊँचे पद तक काम किया। जाते समय उसने नगर का अभिवादन किया कि वह यहाँ की जनता, भूमि का अहसान नहीं चुका सकता। अगर उससे सेवा में कोई भूल न हुई हो तो उसे प्रसन्न होकर जाने की इजाजत दें। जनता आज भी उसे याद करती है। आप इस देश के पढ़े-लिखों को देख नहीं सकते।
लेखक कर्जन को कहता है कि राजकुमार की तरह आपका विदाई-संभाषण भी ऐसा हो सकता है जिसमें आप-अपने स्वार्थी स्वभाव व धूर्तता का उल्लेख करें और भारत की भोली जनता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कह सकेंगे कि आशीर्वाद देता हूँ कि तू फिर उठे और अपने प्राचीन गौरव और यश को फिर से प्राप्त कर। मेरे बाद आने वाले तेरे गौरव को समझे। आपकी इस बात पर देश आपके पिछले कार्यों को भूल सकता है, परंतु आप में इतनी उदारता कहाँ?
शब्दार्थ
पृष्ठ संख्या 46लॉर्ड-स्वामी। चिरस्थाई-हमेशा रहने वाला। वाइसराय-शासक। करुणोत्पादक-करुणा पैदा करने वाला। पधारें-व्यंग्य अर्थ में ‘सिधारें’ है। हर्ष-खुशी विषाद-दु:ख। निर्मल-पवित्र। आविर्भाव-आना। दीन-गरीब। शिवशंभु-बालमुकुंद का कल्पित पात्र जो सदैव भाँग के नशे में रहता है, वह बहकी हुई, परंतु चुभती हुई सच्ची बातें कहता है।
पृष्ठ संख्या 47वरंच-बल्कि। तथापि-फिर भी। घोर-अत्यंत दुखांत-दु:ख भरे अंत वाला। दर्शक-देखने वाला। सूत्रधार-संचालन करने वाला। सुखांत-जिसका अंत अच्छा हो। लीला-क्रीड़ा करने वाला। जाहिर-प्रकट। सुख की नींद सोना-आराम से रहना। नींद और भूख हराम करना-परेशानी में डालना। बिस्तरा गरम राख पर रखना-मुसीबत को बुलाना। चित्त-दिल।
पृष्ठ संख्या 48विचारिए-सोचिए। शान-गौरव। चिराग-दीपक। खलीफ़ा-शासक। प्रभु महाराज-राजा। रईस-अमीर। सलाम-प्रणाम। हौदा-हाथी की पीठ पर रखा हुआ चौकोर आसन। दर्जा-श्रेणी। जंगी लाट-सेना का अफसर। पटखनी खाना-हार जाना। सिर के बल नीचे आना-बुरी तरह हारना। स्वदेश-अपना देश। धीर-गंभीर-शांत और समझदारा बेकानूनी-कानून के विरुद्ध। कनवोकेशन-दीक्षांत समारोह। वक्तृता-भाषण। दिवाला निकालना-कंगाल हो जाना। विलायत-विदेश। इस्तीफा-त्याग-पत्र। तिलांजली देना-छोड़ना। हाकिम-शासक। ताल पर नाचना-इशारे पर चलना। डोरी हिलाना-संकेत करना। हाजिर-उपस्थित। प्रलय होना-भयंकर विनाश। पायमाल होना-नष्ट होना। आरह रखना-विभाजित करना। इच्छित-चाहना। नियत-तय।
पृष्ठ संख्या 49अदना-मामूली। नोटिस-सूचना। अवधि-समय। कान देना-ध्यान देना। कैसर-मनमाना शासन करने वाला रोम का तानाशाह। जार-रूस का स्वच्छद शासक। घेरना-घोटना-अत्यधिक आग्रह करना। फटकने देना-पास आने देना। नादिरशाह-ईरान का बादशाह। कत्लेआम-आम जनता को मारने की प्रक्रिया।
पृष्ठ संख्या 50विच्छेद-अलग। पराधीनता-गुलामी। कृतज्ञता-उपकार को मानना। महिमा-महानता। दीन-कमजोर, गरीब। ताब न होना-चाह न होना। विपद-संकट।
पृष्ठ संख्या 51अभिवादन-प्रणाम। जुदा-अलग। अन्नदाता-पालनकर्ता। चूक करना-कमी रखना। संभाषण-भाषण देना। बदौलत-कारण।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
1. बिछड़न-समय बड़ा करुणोत्पादक होता है। आपको बिछड़ते देखकर आज हृदय में बड़ा दुख है। माइ लॉर्ड। आपके दूसरी बार इस देश में आने से भारतवासी किसी प्रकार प्रसन्न न थे। वे यही चाहते थे कि आप फिर न आवें। पर आप आए और उससे यहाँ के लोग बहुत ही दुखित हुए। वे दिन-रात यही मनाते थे कि जल्द श्रीमान् यहाँ से पधारें। पर अहो! आज आपके जाने पर हर्ष की जगह विषाद होता है। इसी से जाना कि बिछड़न-समय बड़ा करुणोत्पादक होता है, बड़ा पवित्र, बड़ा निर्मल और बड़ा कोमल होता है। वैर-भाव छूटकर शांत रस का आविर्भाव उस समय होता है। (पृष्ठ-46)
प्रश्न
- लेखक किसके बिछड़ने की बात कर रहा है? वह कहाँ जा रहा है?
- बिछड़न का समय कैसा होता हैं?
- कर्ज़न के जाने के समय हर्ष की जगह विषाद क्यों हो रहा है?
उत्तर-
- लेखक लॉर्ड कर्ज़न के भारत से बिछुड़ने की बात कर रहा है। वह इंग्लैंड वापस जा रहा है।
- बिछड़न का समय करुणा उत्पन्न करने वाला होता है। इस समय मन बड़ा पवित्र, निर्मल व कोमल हो जाता है। इस समय वैर-भाव समाप्त होने लगता है और शांत रस अपने-आप आ जाता है।
- कर्ज़न के जाने के समय हर्ष की जगह विषाद हो रहा है, क्योंकि कर्ज़न सर्वाधिक शक्तिशाली वायसराय होते हुए भी उसने देश-हित में कोई काम न्हीं किया। अहंकार, गलत नीतियों व कार्यों के कारण उसके त्याग-पत्र की पेशकश को स्वीकार कर लिया गया। अब वह इंग्लैंड वापस जा रहा है। ऐसे में भारतीयों को हर्ष होना चाहिए किंतु भारतीय संस्कृति में विदाई के वक्त लोग दु:खी हो जाते हैं। इसलिए कर्जन के जाते समय भारतीयों को विषाद हो रहा है।
2. आगे भी इस देश में जो प्रधान शासक आए, अंत में उनको जाना पड़ा। इससे आपका जाना भी परंपरा की चाल से कुछ अलग नहीं है, तथापि आपके शासन-काल का नाटक घोर दुखांत है, और अधिक आश्चर्य की बात यह है कि दर्शक तो क्या, स्वयं सूत्रधार भी नहीं जानता था कि उसने जो खेल सुखांत समझकर खेलना आरंभ किया था, वह दुखांत हो जावेगा। जिसके आदि में सुख था, मध्य में सीमा से बाहर सुख था, उसका अंत ऐसे घोर दुख के साथ कैसे हुआ? आह! घमंडी खिलाड़ी समझता है कि दूसरों को अपनी लीला दिखाता हूँ। किंतु पर्दे के पीछे एक और ही लीलामय की लीला हो रही है, यह उसे खबर नहीं। (पृष्ठ-47)
प्रश्न
- कज़न के शासनकाल का नाटक दुखांत क्यों हैं?
- सबसे अधिक आश्चर्य की बात क्या है?
- सूत्रधार कौन हैं? उसके द्वारा खेल खेलने से क्या अभिप्राय हैं?
उत्तर-
- कर्ज़न को भारत पर अंग्रेजी प्रभुत्व सुदृढ़ करने के लिए भेजा गया था, परंतु उसकी नीतियों के कारण देश में समस्याएँ बढ़ती गई। समस्याओं का समाधान करने के बजाय दमन का रास्ता अपनाया गया। इससे इंग्लैंड के शासक उससे नाराज हो गए और कर्ज़न को बीच में ही पद से हटा दिया गया। अत: कर्ज़न के शासनकाल का नाटक दुखांत में बदल गया।
- सबसे आश्चर्य की बात यह है कि दर्शक तो क्या, स्वयं सूत्रधार भी नहीं जानता था कि उसने जो खेल सुखांत समझकर खेलना आरंभ किया था, वह दुखांत हो जाएगा। जिसके आदि में सुख था, मध्य में सीमा से बाहर सुख था, उसका अंत ऐसे घोर दुख के साथ हुआ।
- सूत्रधार इंग्लैंड का शासक है। वह भारत पर वायसराय के जरिए शासन करता था। वायसराय को अंग्रेजी प्रभुत्व स्थापित करने हेतु कार्य करने की छूट दी जाती थी। अगर वह सही ढंग से काम नहीं करता तो उसे हटाने का अधिकार राजा को था। उसने कर्ज़न को दोबारा वायसराय बनाया ताकि वह भारत में अंग्रेजों के अनुकूल नीतियाँ बनाएँगे, परंतु कर्ज़न के निरंकुश शासन से अंग्रेज-विरोधी माहौल बन गया। अत: कर्ज़न को बीच में ही हटा दिया गया। इसी को सूत्रधार को खेल खेलना कहा गया।
3. विचारिए तो, क्या शान आपकी इस देश में थी और अब क्या हो गई। कितने ऊँचे होकर आप कितने नीचे गिरे! अलिफ़ लैला के अलहदीन ने चिराग रगड़कर और अबुलहसन ने बगदाद के खलीफा की गद्दी पर आँख खोलकर वह शान न देखी, जो दिल्ली-दरबार में आपने देखी। आपकी और आपकी लेडी की कुर्सी सोने की थी और आपके प्रभु महाराज के छोटे भाई और उनकी पत्नी की चाँदी की। आप दाहिने थे, वह बाएँ, आप प्रथम थे, वह दूसरे। इस देश के सब रईसों ने आपको सलाम पहले किया और बादशाह के भाई को पीछे। जुलूस में आपका हाथी सबसे आगे और सबसे ऊँचा था, हौदा, चवर, छत्र आदि सबसे बढ़-चढ़कर थे। सारांश यह है कि ईश्वर और महाराज एडवर्ड के बाद इस देश में आप ही का एक दर्जा था। किंतु अब देखते हैं कि जंगी लाट के मुकाबले में आपने पटखनी खाई, सिर के बल नीच आ रहे! आपके स्वदेश में वही ऊँचे माने गए, आपको साफ़ नीचा देखना पड़ा! पद-त्याग की धमकी से भी ऊँचे न हो सके। (पृष्ठ-48)
प्रश्न
- ‘कितने ऊँचे होकर आप कितने नीचे गिरे’ किसे कहा गया और क्यों?
- कज़न की भारत में कैसी शान-शौकत थी?
- पद-त्याग की धमकी से ऊंचे न होने से का अभिप्राय है?
उत्तर-
- यह पंक्ति लॉर्ड कर्ज़न के लिए कही गई है। भारत में वायसराय का पद सर्वोच्च होता था। एक तरह से सम्राट की शक्तियों से युक्त था। उसे कोई चुनौती नहीं दे सकता था, परंतु गलत नीतियों के चलते किसी को उस पद से हटना पड़े तो यह अपमानजनक होता है। कर्ज़न के साथ भी ऐसा हुआ था।
- कर्ज़न बहुत शक्तिशाली वायसराय था। उसे कल्पना से अधिक मान-सम्मान व शान-शौकत मिली। उसने दिल्ली के दरबार में इतना वैभव देखा जितना अलादीन ने चिराग रगड़कर व अबुलहसन ने बगदाद का खलीफा बनकर भी नहीं देखा था। उसकी व उसकी पत्नी की कुर्सी सोने की बनी थी। इन्हें इंग्लैंड के राजा के भाई से भी अधि क सम्मान मिलता था। जुलूस में इसका हाथी सबसे आगे व सबसे ऊँचा चलता था। ईश्वर व महाराज एडवर्ड के बाद कर्जन को ही माना जाता था।
- . कर्जन ने वायसराय की कौंसिल में मनपसंद फौजी अफसर रखना चाहा। इसके लिए गैरकानूनी बिल भी पास किया। इस कार्य की हर जगह निदा हुई। इस पर उसने पद-त्याग की धमकी दी। उसके इस्तीफे को बादशाह ने मंजूर किया। कर्ज़न का पासा उलट गया। पद लेने के बजाय पद छोड़ना पड़ा।
4. आप बहुत धीर-गंभीर प्रसिद्ध थे। उस सारी धीरता-गंभीरता का आपने इस बार कौंसिल में बेकानूनी कानून पास करते और कनवोकेशन वक्तृता देते समय दिवाला निकाल दिया। यह दिवाला तो इस देश में हुआ। उधर विलायत में आपके बार-बार इस्तीफा देने की धमकी ने प्रकाश कर दिया कि जड़ हिल गई है। अंत में वहाँ भी आपको दिवालिया होना पड़ा और धीरता-गंभीरता के साथ दृढ़ता को भी तिलांजलि देनी पड़ी। इस देश के हाकिम आपकी ताल पर नाचते थे, राजा-महाराजा डोरी हिलाने से सामने हाथ बाँधे हाज़िर होते थे। आपके एक इशारे में प्रलय होती थी। कितने ही राजों को मट्टी के खिलौने की भाँति आपने तोड़-फोड़ डाला। कितने ही मट्टी-काठ के खिलौने आपकी कृपा के जादू से बड़े-बड़े पदाधिकारी बन गए। आपके इस इशारे में इस देश की शिक्षा पायमाल हो गई, स्वाधीनता उड़ गई। बंग देश के सिर पर आरह रखा गया। आह, इतने बड़े माइ लॉर्ड का यह दर्जा हुआ कि फौजी अफसर उनके इच्छित पद पर नियत न हो सका और उनको उसी गुस्से के मारे इस्तीफा दाखिल करना पड़ा, वह भी मंजूर हो गया। उनका रखाया एक आदमी नौकर न रखा, उलटा उन्हीं को निकल जाने का हुक्म मिला! (पृष्ठ-48)
प्रश्न
- कर्ज़न किसलिए प्रसिद्ध थे? उनका भारत व इंग्लैंड में दिवाला कैस निकला?
- कज़न का भारत में कैसा प्रभाव था?
- कज़न को इस्तीफा क्यों देना पड़ा?
उत्तर-
- कर्ज़न धीरता व गंभीरता के लिए प्रसिद्ध थे। कर्ज़न ने कौंसिल में बंगाल-विभाजन जैसा गैरकानूनी कानून पास करवाया। कनवोकेशन में भारत-विरोधी बातें कहीं। इससे इनकी घटिया मानसिकता का पता चल गया। भारत में इनका पुरजोर विरोध किया गया। उधर इंग्लैंड में इस्तीफे की धमकी से इनकी कमजोर स्थिति का पता चल गया। ब्रिटिश सरकार ने इनकी कमजोर हालत के कारण इनका इस्तीफा मंजूर कर लिया।
- कर्ज़न का भारत में जबरदस्त प्रभाव था। यहाँ के अफसर इसके इशारों पर नाचते थे तथा राजा-महाराजा उसकी सेवा में हाज़िर रहते थे। उसने अनेक राजाओं का शासन छीन लिया तथा अनेक निकम्मों को बड़े-बड़े पदों पर बैठाया।
- कर्ज़न एक फौजी अफसर को अपनी इच्छा के पद पर रखवाना चाहते थे, परंतु उनकी बात नहीं मानी गई। इस पर क्रोधित होकर इसने अपना इस्तीफा भेज दिया जिसे स्वीकार कर लिया गया। इस प्रकार ये अपमानित हुए।
5. जिस प्रकार आपका बहुत ऊँचे चढ़कर गिरना यहाँ के निवासियों को दुखित कर रहा है, गिरकर पड़ा रहना उससे भी अधिक दुखित करता है। आपका पद छूट गया तथापि आपका पीछा नहीं छूटा है। एक अदना क्लर्क जिसे नौकरी छोड़ने के लिए एक महीने का नोटिस मिल गया हो नोटिस की अवधि को बड़ी घृणा से काटता है। आपको इस समय अपने पद पर रहना कहाँ तक पसंद है-यह आप ही जानते होंगे। अपनी दशा पर आपको कैसी घृणा आती है, इस बात के जान लेने का इन देशवासियों की अवसर नहीं मिला, पर पतन के पीछे इतनी उलझन में पड़ते उन्होंने किसी को नहीं देखा। (पृष्ठ-49)
प्रश्न
- ‘गिरकर पड़ रहना’ से क्या आशय हैं?
- लखक ने भारतवासियों के किससे छुटकारा पाने की बात कही हैं?
- कज़न अपने ही फैलाए जाल में फँसकर रह गए। कैसे?
उत्तर-
- लेखक कहता है कि कर्ज़न ने पद से त्याग-पत्र दे दिया, जिसे मंजूर कर लिया गया तथा अगले वायसराय के आने तक पद पर बने रहने को कहा गया। इस बात पर लेखक व्यंग्य करता है कि जिस पद से कर्ज़न ने प्रतिष्ठा के कारण त्याग-पत्र दिया था, उसी पर कुछ दिन काम करने से गिरकर पड़े रहने की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। यह समय अत्यंत अपमानजनक होता है।
- लेखक ने भारतवासियों के कर्ज़न से छुटकारा पाने की बात कही है। भारतीय उसके इंग्लैंड वापसी के दिन गिन रहे थे।
- कर्ज़न ने जो कुछ सोचा, उसके उलट हो गया। इस्तीफे की धमकी से उसने अपने पक्ष को सही ठहराना चाहा, परंतु उसका इस्तीक ही मंजूर कर लिया गया। वह इस घटनाक्रम को संभाल नहीं पाया तथा अपने ही फैलाए जाल में फैलाई जाल में फँस गया।
6. क्या आँख बंद करके मनमाने हुक्म चलाना और किसी की कुछ न सुनने का नाम ही शासन है? क्या प्रजा की बात पर कभी कान न देना और उसको दबाकर उसकी मर्जी के विरुद्ध जिद्द से सब काम किए चले जाना ही शासन कहलाता है? एक काम तो ऐसा बतलाइए, जिसमें आपने जिद्द छोड़कर प्रजा की बात पर ध्यान दिया हो। कैसर और ज़ार भी घेरने-घोटने से प्रजा की बात सुन लेते हैं पर आप एक मौका तो बताइए, जिसमें किसी अनुरोध या प्रार्थना सुनने के लिए प्रजा के लोगों को आपने अपने निकट फटकने दिया हो और उनकी बात सुनी हो। नादिरशाह ने जब दिल्ली में कत्लेआम किया तो आसिफजाह के तलवार गले में डालकर प्रार्थना करने पर उसने कत्लेआम उसी क्षण रोक दिया। पर आठ करोड़ प्रजा के गिड़गिड़ाकर विच्छेद न करने की प्रार्थना पर आपने ज़रा भी ध्यान नहीं दिया। इस समय आपकी शासन-अवधि पूरी हो गई है तथापि बंग-विच्छेद किए बिना घर जाना आपको पसंद नहीं है! नादिर से भी बढ़कर आपकी जिद्द है। क्या समझते हैं कि आपकी जिद्द से प्रजा के जी में दुख नहीं होता? आप विचारिए तो एक आदमी को आपके कहने पर पद न देने से आप नौकरी छोड़े जाते हैं, इस देश की प्रजा को भी यदि कहीं जाने की जगह होती, तो क्या वह नाराज होकर इस देश को छोड़ न जाती? (पृष्ठ-49-50)
प्रश्न
- कज़न ने किस प्रकार शासन किया था? क्या उसका शासन उचित था?
- कैसर और ज़ार कौन थे? इन्हें किस काम के लिए जाना जाता है?
- कज़न और नादिरशाह के बीच क्या तुलना की गई है?
उत्तर-
- कर्ज़न ने सदा निरंकुश शासन किया। उसने मनमाने आदेश दिए तथा प्रजा की हर बात को अनसुना कर दिया। यह शासन पूर्णतया अनुचित था। लोकहित से बड़ी शासक की जिद नहीं होती।
- ‘कैसर’ और ‘ज़ार’ शब्द रोम के तानाशाह जूलियस सीज़र से बने हैं। कैसर शब्द का प्रयोग ‘मनमानी करने वाले शासकों’ तथा ‘ज़ार’ शब्द का प्रयोग रूस के तानाशाहों के लिए किया जाता था।
- नादिरशाह ने जिद के कारण दिल्ली में भयंकर कत्लेआम करवाया। इसी तरह कर्ज़न ने बंगाल-विभाजन कर दिया तथा आम जनता के जीने के अधिकार छीने। कर्ज़न नादिरशाह से भी अधिक जिद्दी था। नादिरशाह ने आसिफजाह की प्रार्थना पर तत्काल कत्लेआम रुकवाया, परंतु कर्ज़न पर आठ करोड़ लोगों की गिड़गड़ाहट का कोई असर नहीं पडा।
7. यहाँ की प्रजा ने आपकी जिद्द का फल यहीं देख लिया। उसने देख लिया कि आपकी जिस जिद्द ने इस देश की प्रजा को पीड़ित किया, आपको भी उसने कम पीड़ा न दी, यहाँ तक कि आप स्वयं उसका शिकार हुए। यहाँ की प्रजा वह प्रजा है, जो अपने दुख और कष्टों की अपेक्षा परिणाम का अधिक ध्यान रखती है। वह जानती है कि संसार में सब चीज़ों का अंत है। दुख का समय भी एक दिन निकल जाएगा, इसी से सब दुखों को झेलकर, पराधीनता सहकर भी वह जीती है। माइ लॉर्ड! इस कृतज्ञता की भूमि की महिमा आपने कुछ न समझी और न यहाँ की दीन प्रजा की श्रद्धा-भक्ति अपने साथ ले जा सके, इसका बड़ा दुख है। (पृष्ठ-50)
प्रश्न
- लॉर्ड कर्ज़न की जिद्द से भारतीय जनता ने क्या पीड़ा सही ?
- भारतीय प्रजा की क्या विशेषता है?
- लखक को किस बात का दुख हैं?
उत्तर-
- लॉर्ड कर्ज़न को बंगाल विभाजन की जिद्द थी। उसने 1905 में बंगाल विभाजन किया। जनता की प्रार्थनाओं व विरोध पर उसने कोई ध्यान नहीं दिया। इससे जनता बहुत परेशान हो गई थी। कर्ज़न को इंग्लैंड वापस जाना था, परंतु जाते-जाते वह बंगाल का विभाजन भी कर गया।
- भारतीय प्रजा की विशेषता यह है कि यह अपने दुख और कष्टों की अपेक्षा परिणाम का अधिक ध्यान रखती है। उसे पता है कि संसार में हर चीज का अंत है। दुख का समय भी धीरे-धीरे निकल जाएगा। इसी से वह सब दुखों को झेलकर पराधीनता सहकर भी जीती है।
- लेखक को इस बात का दुख है कि कर्ज़न ने भारत-भूमि की गरिमा को नहीं समझा। उसने भारत के कृतज्ञता भाव को नहीं समझा। यदि वह भारतीयों की भलाई के लिए कुछ करता तो अपने साथ गरीब प्रजा की श्रद्धा-भक्ति को ले जाता।
8.‘अभागे भारत! मैंने तुमसे सब प्रकार का लाभ उठाया और तेरी बदौलत वह शान देखी, जो इस जीवन में असंभव है। तूने मेरा कुछ नहीं बिगाड़ा; पर मैंने तेरे बिगाड़ने में कुछ कमी न की। संसार के सबसे पुराने देश! जब तक मेरे हाथ में शक्ति थी, तेरी भलाई की इच्छा मेरे जी में न थी। अब कुछ शक्ति नहीं है, जो तेरे लिएँ कुछ कर सकूं। पर आशीर्वाद करता हूँ कि तू फिर उठे और अपने प्राचीन गौरव और यश को फिर से प्राप्त करे। मेरे बाद आने वाले तेरे गौरव को समझे।’ आप कर सकते हैं और यह देश आपकी पिछली सब बातें भूल सकता है, पर इतनी उदारता माई लॉर्ड में कहाँ? (पृष्ठ-51)
प्रश्न
- लेखक ने लार्ड कज़न पर क्या व्यय किया हैं?
- भारत ने लार्ड कज़न से कैसा व्यवहार किया?
- ‘इतनी उदारता माई लॉर्ड में कहाँ?’—का व्यग्य बताइए।
उत्तर-
- लेखक लॉर्ड कर्ज़न पर व्यंग्य करता है कि उसने भारत से हर तरह के लाभ उठाए। उसने वह शान देखी। जिसे वह कभी नहीं पा सकता। उसने भारतीयों का बहुत कुछ बिगाड़ा तथा भारत की भलाई नहीं की।
- भारत ने लॉर्ड कर्ज़न का कुछ नहीं बिगाड़ा। उसे पूरा मान-सम्मान दिया। उसकी शान-शौकत बढ़ाई तथा उसके अत्याचार सहकर भी कुछ नहीं किया।
- लेखक व्यंग्य करता है कि कर्ज़न जाते समय भारतीयों की प्रशंसा, अपने कुकृत्यों को स्वीकारना तथा भारत के अच्छे भविष्य की कामना कर दे तो यह देश उसकी सारी पिछली बातें भूल सकता है, परंतु कर्ज़न में उदारता नहीं है। वह घमंडी तथा नस्ल-भेद से ग्रस्त है।
पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न
पाठ के साथ
प्रश्न 1:
शिवशंभु की दो गायों की कहानी के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है?
उत्तर-
लेखक ‘शिवशंभु की दो गायों’ की कहानी के माध्यम से कहना चाहता है कि भारत में मनुष्य ही नहीं, पशुओं में भी साथ रहने वालों के साथ लगाव होता है। वे उस व्यक्ति के बिछुड़ने पर भी दुखी होते हैं जो उन्हें कष्ट पहुँचाता है। यहाँ भावना प्रमुख होती है। हमारे देश में पशु-पक्षियों को भी बिछड़ने के समय उदास देखा गया है। बिछड़ते समय वैर-भाव को भुला दिया जाता है। विदाई का समय बड़ा करुणोत्पादक होता है। लॉर्ड कर्जन जैसे क्रूर आततायी के लिए भी भारत की निरीह जनता सहानुभूति का भाव रखती है।
शिवशंभु की दो गायों की कहानी के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है?
उत्तर-
लेखक ‘शिवशंभु की दो गायों’ की कहानी के माध्यम से कहना चाहता है कि भारत में मनुष्य ही नहीं, पशुओं में भी साथ रहने वालों के साथ लगाव होता है। वे उस व्यक्ति के बिछुड़ने पर भी दुखी होते हैं जो उन्हें कष्ट पहुँचाता है। यहाँ भावना प्रमुख होती है। हमारे देश में पशु-पक्षियों को भी बिछड़ने के समय उदास देखा गया है। बिछड़ते समय वैर-भाव को भुला दिया जाता है। विदाई का समय बड़ा करुणोत्पादक होता है। लॉर्ड कर्जन जैसे क्रूर आततायी के लिए भी भारत की निरीह जनता सहानुभूति का भाव रखती है।
प्रश्न 2:
आठ करोड़ प्रजा के गिड़गिड़ाकर विच्छेद न करने की प्रार्थना पर आयने ज़रा भी ध्यान नहीं दिया-यहाँ किस ऐतिहासिक घटना की ओर संकेत किया गया है?
उत्तर-
लेखक ने यहाँ बंगाल के विभाजन की ऐतिहासिक घटना की ओर संकेत किया है। लॉर्ड कर्ज़न दो बार भारत का वायसराय बनकर आया। उसने भारत पर अंग्रेजों का प्रभुत्व स्थाई करने के लिए अनेक काम किए। भारत में राष्ट्रवादी भावनाओं को कुचलने के लिए उसने बंगाल का विभाजन करने की योजना बनाई। कज़न की इस चाल को देश की जनता समझ गई और उसने इस योजना का विरोध किया, परंतु कर्ज़न ने अपनी जिद्द को पूरा किया। बंगाल के दो हिस्से कर दिए गए-पूर्वी बंगाल तथा पश्चिमी बंगाल।
आठ करोड़ प्रजा के गिड़गिड़ाकर विच्छेद न करने की प्रार्थना पर आयने ज़रा भी ध्यान नहीं दिया-यहाँ किस ऐतिहासिक घटना की ओर संकेत किया गया है?
उत्तर-
लेखक ने यहाँ बंगाल के विभाजन की ऐतिहासिक घटना की ओर संकेत किया है। लॉर्ड कर्ज़न दो बार भारत का वायसराय बनकर आया। उसने भारत पर अंग्रेजों का प्रभुत्व स्थाई करने के लिए अनेक काम किए। भारत में राष्ट्रवादी भावनाओं को कुचलने के लिए उसने बंगाल का विभाजन करने की योजना बनाई। कज़न की इस चाल को देश की जनता समझ गई और उसने इस योजना का विरोध किया, परंतु कर्ज़न ने अपनी जिद्द को पूरा किया। बंगाल के दो हिस्से कर दिए गए-पूर्वी बंगाल तथा पश्चिमी बंगाल।
प्रश्न 3:
कर्जन को इस्तीफा क्यों देना पड़ गया?
उत्तर-
कर्जन को इस्तीफा निम्नलिखित कारणों से देना पड़ा –
1. कर्जन ने बंगाल का विभाजन राष्ट्रवादी ताकतों को तोड़ने के लिए किया था, परंतु इसका परिणाम उलटा हुआ। सारा देश एकजुट हो गया और ब्रिटिश शासन की जड़े हिल गईं।
2. कर्जन इंग्लैंड में एक फ़ौजी अफ़सर को इच्छित पद पर नियुक्त करवाना चाहता था। उसकी सिफारिश को नहीं माना। गया। इससे क्षुब्ध होकर उन्होंने इस्तीफा देने की धमकी दी। ब्रिटिश सरकार ने उनका इस्तीफा की मंजूर कर लिया।
कर्जन को इस्तीफा क्यों देना पड़ गया?
उत्तर-
कर्जन को इस्तीफा निम्नलिखित कारणों से देना पड़ा –
1. कर्जन ने बंगाल का विभाजन राष्ट्रवादी ताकतों को तोड़ने के लिए किया था, परंतु इसका परिणाम उलटा हुआ। सारा देश एकजुट हो गया और ब्रिटिश शासन की जड़े हिल गईं।
2. कर्जन इंग्लैंड में एक फ़ौजी अफ़सर को इच्छित पद पर नियुक्त करवाना चाहता था। उसकी सिफारिश को नहीं माना। गया। इससे क्षुब्ध होकर उन्होंने इस्तीफा देने की धमकी दी। ब्रिटिश सरकार ने उनका इस्तीफा की मंजूर कर लिया।
प्रश्न 4:
विचारिए तो, क्या शान आपकी इस देश में थी और अब क्या हो गई! कितने ऊँचे होकर आप कितने गिरे!-आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
लेखक कहता है कि कर्ज़न की भारत में शान थी। दिल्ली दरबार में उसका वैभव चरम सीमा पर था। पति-पत्नी की कुर्सी सोने की थी। उसका हाथी सबसे ऊँचा व सबसे आगे रहता था। सम्राट के भाई का स्थान भी इनसे नीचा था। इसके इशारे पर प्रशासन, राजा, धनी नाचते थे। इसके संकेत पर बड़े-बड़े राजाओं को मिट्टी में मिला दिया गया तथा अनेक निकम्मों को बड़े पद मिले। इस देश में भगवान और एडवर्ड के बाद उसका स्थान था, परंतु इस्तीफा देने के बाद सब कुछ खत्म हो गया। इसकी सिफारिश पर एक आदमी भी नहीं रखा गया। जिद के कारण इसका वैभव नष्ट हो गया।
विचारिए तो, क्या शान आपकी इस देश में थी और अब क्या हो गई! कितने ऊँचे होकर आप कितने गिरे!-आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
लेखक कहता है कि कर्ज़न की भारत में शान थी। दिल्ली दरबार में उसका वैभव चरम सीमा पर था। पति-पत्नी की कुर्सी सोने की थी। उसका हाथी सबसे ऊँचा व सबसे आगे रहता था। सम्राट के भाई का स्थान भी इनसे नीचा था। इसके इशारे पर प्रशासन, राजा, धनी नाचते थे। इसके संकेत पर बड़े-बड़े राजाओं को मिट्टी में मिला दिया गया तथा अनेक निकम्मों को बड़े पद मिले। इस देश में भगवान और एडवर्ड के बाद उसका स्थान था, परंतु इस्तीफा देने के बाद सब कुछ खत्म हो गया। इसकी सिफारिश पर एक आदमी भी नहीं रखा गया। जिद के कारण इसका वैभव नष्ट हो गया।
प्रश्न 5:
आपके और यहाँ के निवासियों के बीच में कोई तीसरी शक्ति और भी है-यहाँ तीसरी शक्ति किसे कहा गया है?
उत्तर-
लॉर्ड कर्जन स्वयं को निरंकुश, सर्वशक्ति संपन्न मान बैठा था। भारतीय जनता उसकी मनमानी सह रही थी। अचानक गुस्साए लार्ड का इस्तीफा मंजूर हो गया और उसे जाना पड़ा। यहाँ लेखक कहना चाहते हैं कि लॉर्ड कर्जन और भारतीय जनता के बीच एक तीसरी शक्ति अर्थात् ब्रिटिश सरकार है जिस पर न तो लॉर्ड कर्जन का नियंत्रण है और न ही भारत के निवासियों का ही नियंत्रण है। इंग्लैंड की महारानी का शासन न तो कर्जन की बात सुनता है और न ही कर्जन के खिलाफ भारतीय जनता की गुहार सुनता है। उस पर इस निरंकुश का अंकुश भी नहीं चलता।
आपके और यहाँ के निवासियों के बीच में कोई तीसरी शक्ति और भी है-यहाँ तीसरी शक्ति किसे कहा गया है?
उत्तर-
लॉर्ड कर्जन स्वयं को निरंकुश, सर्वशक्ति संपन्न मान बैठा था। भारतीय जनता उसकी मनमानी सह रही थी। अचानक गुस्साए लार्ड का इस्तीफा मंजूर हो गया और उसे जाना पड़ा। यहाँ लेखक कहना चाहते हैं कि लॉर्ड कर्जन और भारतीय जनता के बीच एक तीसरी शक्ति अर्थात् ब्रिटिश सरकार है जिस पर न तो लॉर्ड कर्जन का नियंत्रण है और न ही भारत के निवासियों का ही नियंत्रण है। इंग्लैंड की महारानी का शासन न तो कर्जन की बात सुनता है और न ही कर्जन के खिलाफ भारतीय जनता की गुहार सुनता है। उस पर इस निरंकुश का अंकुश भी नहीं चलता।
पाठ के आस-पास
प्रश्न 1:
पाठ का यह अंश शिवशभू के चिट्ठे से लिया गया है। शिवशंभु नाम की चर्चा पाठ में भी हुई है। बालमुकुंद गुप्त ने इस नाम का उपयोग क्यों किया होगा?
उत्तर-
शिवशंभु एक काल्पनिक पात्र है जो भाँग के नशे में खरी-खरी बात कहता है। यह पात्र अंग्रेजों की कुनीतियों को उजागर करता है। लेखक ने इस नाम का उपयोग सरकारी कानून के कारण किया। कर्जन ने प्रेस की अभिव्यक्ति पर प्रतिबंध लगा दिया था। उस समय ब्रिटिश साम्राज्य से सीधी टक्कर लेने के हालात नहीं थे, परंतु शासन की पोल खोलकर जनता को जागरूक भी करना था। अतः काल्पनिक पात्र के जरिए अपनी मरजी की बातें कहलवाई जाती थीं।
पाठ का यह अंश शिवशभू के चिट्ठे से लिया गया है। शिवशंभु नाम की चर्चा पाठ में भी हुई है। बालमुकुंद गुप्त ने इस नाम का उपयोग क्यों किया होगा?
उत्तर-
शिवशंभु एक काल्पनिक पात्र है जो भाँग के नशे में खरी-खरी बात कहता है। यह पात्र अंग्रेजों की कुनीतियों को उजागर करता है। लेखक ने इस नाम का उपयोग सरकारी कानून के कारण किया। कर्जन ने प्रेस की अभिव्यक्ति पर प्रतिबंध लगा दिया था। उस समय ब्रिटिश साम्राज्य से सीधी टक्कर लेने के हालात नहीं थे, परंतु शासन की पोल खोलकर जनता को जागरूक भी करना था। अतः काल्पनिक पात्र के जरिए अपनी मरजी की बातें कहलवाई जाती थीं।
प्रश्न 2:
नादिर से भी बढ़कर आपकी जिदद हैं-कर्जन के संदर्भ में क्या आपको यह बात सही लगती है? पक्ष या विपक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर-
जी हाँ! कर्ज़न के संदर्भ में हमें यह बात सही लगती है। नादिरशाह एक क्रूर राजा था। उसने दिल्ली में कत्लेआम करवाया, परंतु आसिफजाह ने तलवार गले में डालकर उसके आगे समर्पण कर कत्लेआम रोकने की प्रार्थना की, तो तुरंत कत्लेआम रोक दिया गया। कर्ज़न ने बंगाल का विभाजन किया। आठ करोड़ भारतवासियों की बार-बार विनती करने पर भी उसने अपनी जिद्द नहीं छोड़ी। इस संदर्भ में कर्ज़न की जिद्द नादिरशाह से बड़ी है। वह नादिरशाह से अधिक क्रूर था। उसने जनहित की उपेक्षा की।
नादिर से भी बढ़कर आपकी जिदद हैं-कर्जन के संदर्भ में क्या आपको यह बात सही लगती है? पक्ष या विपक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर-
जी हाँ! कर्ज़न के संदर्भ में हमें यह बात सही लगती है। नादिरशाह एक क्रूर राजा था। उसने दिल्ली में कत्लेआम करवाया, परंतु आसिफजाह ने तलवार गले में डालकर उसके आगे समर्पण कर कत्लेआम रोकने की प्रार्थना की, तो तुरंत कत्लेआम रोक दिया गया। कर्ज़न ने बंगाल का विभाजन किया। आठ करोड़ भारतवासियों की बार-बार विनती करने पर भी उसने अपनी जिद्द नहीं छोड़ी। इस संदर्भ में कर्ज़न की जिद्द नादिरशाह से बड़ी है। वह नादिरशाह से अधिक क्रूर था। उसने जनहित की उपेक्षा की।
प्रश्न 3:क्या आँख बंद करके मनमाने हुक्म चलाना और किसी की कुछ न सुनने का नाम ही शासन है ? इन पंक्तियों को ध्यान में रखते हुए शासन क्या है? इस यर अचा कीजिए।
उत्तर-
‘शासन’ किसी एक व्यक्ति की इच्छा से नहीं चलता। यह नियमों का समूह है जो अच्छी व्यवस्था का गठन करता है। यह प्रबंध जनहित के अनुरूप होनी चाहिए। निरंकुश शासक से जनता दुखी रहती है तथा कुछ समय बाद उसे शासक का विनाश हो जाता है। प्रजा को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होनी चाहिए। हर नीति में जनकल्याण का भाव होना चाहिए।
उत्तर-
‘शासन’ किसी एक व्यक्ति की इच्छा से नहीं चलता। यह नियमों का समूह है जो अच्छी व्यवस्था का गठन करता है। यह प्रबंध जनहित के अनुरूप होनी चाहिए। निरंकुश शासक से जनता दुखी रहती है तथा कुछ समय बाद उसे शासक का विनाश हो जाता है। प्रजा को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होनी चाहिए। हर नीति में जनकल्याण का भाव होना चाहिए।
प्रश्न 4:
इस पाठ में आए अलिफ लैला, अलहदीन, अबुल हसन और बगदाद के खलीफ़ा के बारे में सूचना एकत्रित कर कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर-
विद्यार्थी स्वयं करें।
इस पाठ में आए अलिफ लैला, अलहदीन, अबुल हसन और बगदाद के खलीफ़ा के बारे में सूचना एकत्रित कर कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर-
विद्यार्थी स्वयं करें।
गौर करने की बात
(क) इससे आपका जाना भी परपरा की चाल से कुछ अलग नहीं है, तथापि आपके शासनकाल का नाटक घोर दुखांत है, और अधिक आश्चर्य की बात यह है कि दर्शक तो क्या, स्वय सूत्रधार भी नहीं जानता था कि उसने जो खेल सुखांत समझकर खेलना आरंभ किया था, वह दुखांत हो जावेगा।
(ख) यहाँ की प्रजा ने आपकी जिद्द का फल यहीं देख लिया। उसने देख लिया कि आपकी जिस जिदद ने इस देश की प्रजा को पीड़ित किया, आपको भी उसने कम पीड़ा न दी, यहाँ तक कि आप स्वय उसका शिकार हुए।
(ख) यहाँ की प्रजा ने आपकी जिद्द का फल यहीं देख लिया। उसने देख लिया कि आपकी जिस जिदद ने इस देश की प्रजा को पीड़ित किया, आपको भी उसने कम पीड़ा न दी, यहाँ तक कि आप स्वय उसका शिकार हुए।
भाषा की बात
प्रश्न 1:
वे दिन-रात यही मनाते थे कि जल्द श्रीमान् यहाँ से पधारें सामान्य तौर पर आने के लिए यधारें शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। यहाँ पधारें शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तर-यहाँ पधारें शब्द का अर्थ है-चले जाएँ।
वे दिन-रात यही मनाते थे कि जल्द श्रीमान् यहाँ से पधारें सामान्य तौर पर आने के लिए यधारें शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। यहाँ पधारें शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तर-यहाँ पधारें शब्द का अर्थ है-चले जाएँ।
प्रश्न 2:
पाठ में से कुछ वाक्य नीचे दिए गए हैं, जिनमें भाषा का विशिष्ट प्रयोग (भारतेंदु युगीन हिंदी) हुआ है। उन्हें सामान्य हिंदी में लिखिए
पाठ में से कुछ वाक्य नीचे दिए गए हैं, जिनमें भाषा का विशिष्ट प्रयोग (भारतेंदु युगीन हिंदी) हुआ है। उन्हें सामान्य हिंदी में लिखिए
(क) आगे भी इस देश में जो प्रधान शासक आए, अत को उनकी जाना पड़ा।
(ख) आप किस को आए थे और क्या कर चले?
(ग) उनका रखाया एक आदमी नौकर न रखा।
(घ) पर आशीवाद करता हूँ कि तू फिर उठे और अपने प्राचीन गौरव और यश को फिर से लाभ करें।
(ख) आप किस को आए थे और क्या कर चले?
(ग) उनका रखाया एक आदमी नौकर न रखा।
(घ) पर आशीवाद करता हूँ कि तू फिर उठे और अपने प्राचीन गौरव और यश को फिर से लाभ करें।
उत्तर-(क) पहले भी इस देश में जो प्रधान शासक हुए, अंत में उन्हें जाना पड़ा।
(ख) आप किसलिए आए थे और क्या करके चले ?
(ग) उनके रखवाने से एक आदमी नौकर न रखा गया।
(घ) आशीर्वाद देता हूँ कि तू फिर उठे और अपने प्राचीन गौरव और यश को फिर से प्राप्त करे।
(ख) आप किसलिए आए थे और क्या करके चले ?
(ग) उनके रखवाने से एक आदमी नौकर न रखा गया।
(घ) आशीर्वाद देता हूँ कि तू फिर उठे और अपने प्राचीन गौरव और यश को फिर से प्राप्त करे।
अन्य हल प्रश्न
● बोधात्मक प्रशन
प्रश्न 1:
‘विदाई-संभाषण’ पाठ का प्रतिपादय स्पष्ट करें।
उत्तर-
विदाई-संभाषण पाठ वायसराय कर्जन जो 1899-1904 व 1904-1905 तक दो बार वायसराय रहे, के शासन में भारतीयों की स्थिति का खुलासा करता है। यह अध्याय शिवशंभु के चिट्ठे का अंश है। कर्ज़न के शासनकाल में विकास के बहुत कार्य हुए, नए-नए आयोग बनाए गए, किंतु उन सबका उद्देश्य शासन में गोरों का वर्चस्व स्थापित करना तथा इस देश के संसाधनों का अंग्रेजों के हित में सर्वाधिक उपयोग करना था। कर्ज़न ने हर स्तर पर अंग्रेजों का वर्चस्व स्थापित करने की चेष्टा की। वह सरकारी निरंकुशता का पक्षधर था। लिहाजा प्रेस की स्वतंत्रता तक पर उसने प्रतिबंध लगा दिया। अंतत: कौंसिल में मनपसंद अंग्रेज सदस्य नियुक्त करवाने के मुद्दे पर उसे देश-विदेश-दोनों जगहों पर नीचा देखना पड़ा। क्षुब्ध होकर उसने इस्तीफा दे दिया और वापस इंग्लैंड चला गया। लेखक ने भारतीयों की बेबसी, दुख एवं लाचारी को व्यंग्यात्मक ढंग से लॉर्ड कर्जन की लाचारी से जोड़ने की कोशिश की है। साथ ही यह बताने की कोशिश की है कि शासन के आततायी रूप से हर किसी को कष्ट होता है चाहे वह सामान्य जनता हो या फिर लॉर्ड कर्ज़न जैसा वायसराय। यह निबंध भी उस समय लिखा गया है जब प्रेस पर पाबंदी का दौर चल रहा था। ऐसी स्थिति में विनोदप्रियता, चुलबुलापन, संजीदगी, नवीन भाषा-प्रयोग एवं रवानगी के साथ यह एक साहसिक गद्य का नमूना भी है।
‘विदाई-संभाषण’ पाठ का प्रतिपादय स्पष्ट करें।
उत्तर-
विदाई-संभाषण पाठ वायसराय कर्जन जो 1899-1904 व 1904-1905 तक दो बार वायसराय रहे, के शासन में भारतीयों की स्थिति का खुलासा करता है। यह अध्याय शिवशंभु के चिट्ठे का अंश है। कर्ज़न के शासनकाल में विकास के बहुत कार्य हुए, नए-नए आयोग बनाए गए, किंतु उन सबका उद्देश्य शासन में गोरों का वर्चस्व स्थापित करना तथा इस देश के संसाधनों का अंग्रेजों के हित में सर्वाधिक उपयोग करना था। कर्ज़न ने हर स्तर पर अंग्रेजों का वर्चस्व स्थापित करने की चेष्टा की। वह सरकारी निरंकुशता का पक्षधर था। लिहाजा प्रेस की स्वतंत्रता तक पर उसने प्रतिबंध लगा दिया। अंतत: कौंसिल में मनपसंद अंग्रेज सदस्य नियुक्त करवाने के मुद्दे पर उसे देश-विदेश-दोनों जगहों पर नीचा देखना पड़ा। क्षुब्ध होकर उसने इस्तीफा दे दिया और वापस इंग्लैंड चला गया। लेखक ने भारतीयों की बेबसी, दुख एवं लाचारी को व्यंग्यात्मक ढंग से लॉर्ड कर्जन की लाचारी से जोड़ने की कोशिश की है। साथ ही यह बताने की कोशिश की है कि शासन के आततायी रूप से हर किसी को कष्ट होता है चाहे वह सामान्य जनता हो या फिर लॉर्ड कर्ज़न जैसा वायसराय। यह निबंध भी उस समय लिखा गया है जब प्रेस पर पाबंदी का दौर चल रहा था। ऐसी स्थिति में विनोदप्रियता, चुलबुलापन, संजीदगी, नवीन भाषा-प्रयोग एवं रवानगी के साथ यह एक साहसिक गद्य का नमूना भी है।
प्रश्न 2:
कैसर, ज़ार तथा नादिरशाह पर टिप्पणियाँ लिखिए।उत्तर-
कैसर-यह शब्द रोमन तानाशाह जूलियस सीजर के नाम से बना है। यह शब्द तानाशाह जर्मन शासकों के लिए प्रयोग होता था। जार-यह भी जूलियस सीजर से बना शब्द है जो विशेष रूप से रूस के तानाशाह शासकों (16वीं सदी से 1917 तक) के लिए प्रयुक्त होता था। इस शब्द का पहली बार बुल्गेरियाई शासक (913 में) के लिए प्रयोग हुआ था। नादिरशाह-यह 1736 से 1747 तक ईरान का शाह रहा। तानाशाही स्वरूप के कारण ‘नेपोलियन ऑफ परशिया’ के नाम से भी जाना जाता था। पानीपत के तीसरे युद्ध में अहमदशाह अब्दाली को नादिरशाह ने भी आक्रमण के लिए भेजा था।
कैसर, ज़ार तथा नादिरशाह पर टिप्पणियाँ लिखिए।उत्तर-
कैसर-यह शब्द रोमन तानाशाह जूलियस सीजर के नाम से बना है। यह शब्द तानाशाह जर्मन शासकों के लिए प्रयोग होता था। जार-यह भी जूलियस सीजर से बना शब्द है जो विशेष रूप से रूस के तानाशाह शासकों (16वीं सदी से 1917 तक) के लिए प्रयुक्त होता था। इस शब्द का पहली बार बुल्गेरियाई शासक (913 में) के लिए प्रयोग हुआ था। नादिरशाह-यह 1736 से 1747 तक ईरान का शाह रहा। तानाशाही स्वरूप के कारण ‘नेपोलियन ऑफ परशिया’ के नाम से भी जाना जाता था। पानीपत के तीसरे युद्ध में अहमदशाह अब्दाली को नादिरशाह ने भी आक्रमण के लिए भेजा था।
प्रश्न 3:
राजकुमार सुल्तान ने नरवरगढ़ से किन शब्दों में विदा ली थी?
उत्तर-
राजकुमार सुल्तान ने नरवरगढ़ से विदा लेते समय कहा-‘प्यारे नरवरगढ़! मेरा प्रणाम स्वीकार ले। आज मैं तुझसे जुदा होता हूँ। तू मेरा अन्नदाता है। अपनी विपद के दिन मैंने तुझमें काटे हैं। तेरे ऋण का बदला यह गरीब सिपाही नहीं दे सकता। भाई नरवरगढ़! यदि मैंने जानबूझकर एक दिन भी अपनी सेवा में चूक की हो, यहाँ की प्रजा की शुभ चिंता न की हो, यहाँ की स्त्रियों को माता और बहन की दृष्टि से न देखा हो तो मेरा प्रणाम न ले, नहीं तो प्रसन्न होकर एक बार मेरा प्रणाम ले और मुझे जाने की आज्ञा दे।’
राजकुमार सुल्तान ने नरवरगढ़ से किन शब्दों में विदा ली थी?
उत्तर-
राजकुमार सुल्तान ने नरवरगढ़ से विदा लेते समय कहा-‘प्यारे नरवरगढ़! मेरा प्रणाम स्वीकार ले। आज मैं तुझसे जुदा होता हूँ। तू मेरा अन्नदाता है। अपनी विपद के दिन मैंने तुझमें काटे हैं। तेरे ऋण का बदला यह गरीब सिपाही नहीं दे सकता। भाई नरवरगढ़! यदि मैंने जानबूझकर एक दिन भी अपनी सेवा में चूक की हो, यहाँ की प्रजा की शुभ चिंता न की हो, यहाँ की स्त्रियों को माता और बहन की दृष्टि से न देखा हो तो मेरा प्रणाम न ले, नहीं तो प्रसन्न होकर एक बार मेरा प्रणाम ले और मुझे जाने की आज्ञा दे।’
प्रश्न 4: ‘विदाई-संभाषण’ तत्कालीन साहसिक लेखन का नमूना है। सिदध कीजिए।
उत्तर-
विदाई-संभाषण व्यंग्यात्मक, विनोदपूर्ण, चुलबुला, ताजगीवाला गद्य है। यह गद्य आततायी को पीड़ा की चुभन का अहसास कराता है। इससे यह नहीं लगता कि कर्ज़न ने प्रेस पर पाबंदी लगाई थी। इसमें इतने व्यंग्य प्रहार हैं कि कठोर-से-कठोर शासक भी घायल हुए बिना नहीं रह सकता। इसे साहसिक लेखन के साथ-साथ आदर्श भी कहा जा सकता है।
उत्तर-
विदाई-संभाषण व्यंग्यात्मक, विनोदपूर्ण, चुलबुला, ताजगीवाला गद्य है। यह गद्य आततायी को पीड़ा की चुभन का अहसास कराता है। इससे यह नहीं लगता कि कर्ज़न ने प्रेस पर पाबंदी लगाई थी। इसमें इतने व्यंग्य प्रहार हैं कि कठोर-से-कठोर शासक भी घायल हुए बिना नहीं रह सकता। इसे साहसिक लेखन के साथ-साथ आदर्श भी कहा जा सकता है।
प्रश्न 5:कर्ज़न के कौन-कौन-से कार्य क्रूरता की सीमा में आते हैं?
उत्तर-
कर्ज़न के निम्नलिखित कार्य क्रूरता की सीमा में आते हैं
उत्तर-
कर्ज़न के निम्नलिखित कार्य क्रूरता की सीमा में आते हैं
(क) प्रेस पर प्रतिबंध।
(ख) करोड़ों लोगों की विनती के बावजूद बंगाल का विभाजन।
(ग) देश के संसाधनों का अंग्रेजी-हित में प्रयोग।
(घ) अंग्रेजों का वर्चस्व स्थापित करना।
(ख) करोड़ों लोगों की विनती के बावजूद बंगाल का विभाजन।
(ग) देश के संसाधनों का अंग्रेजी-हित में प्रयोग।
(घ) अंग्रेजों का वर्चस्व स्थापित करना।
NCERT Solutions for Class 11 Hindi Core – गद्य भाग – विदाई-संभाषण
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